उरई के युवा वीर अभयी परिहार के बलिदान की याद दिलाता _भुजरियां_या_कजलियां पर्व
प्रकृति प्रेम और खुशहाली से जुड़ा पर्व है कजलिया , यह पर्व राखी यानी रक्षा बंधन पर्व के दूसरे दिन मनाया जाता है

कजलिया या भुंजरिया बुन्देलखण्ड में जीवंतता का त्योहार है जो जीवन को उत्सव मानने का सन्देश देता है । कजलियां का त्योहार उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश के उन क्षेत्रों में ज्यादा मनाया जाता है जहां चंदेलों का शासन रहा है ।कजलियां पर्व राखी यानी रक्षा बंधन पर्व के दूसरे दिन मनाया जाता है। इसे कई स्थानों पर भुजरियां/भुजलिया नाम से भी जाना जाता है। यह त्योहार प्रकृति प्रेम और खुशहाली से जुड़ा पर्व है। इसका प्रचलन सदियों से चला आ रहा है।
कजलियां मुख्य रूप से बुंदेलखंड में राखी के दूसरे दिन की जाने वाली एक परंपरा है, जिसमें नाग पंचमी के दूसरे दिन खेतों से लाई गई मिट्टी को बर्तनों में भरकर उसमें गेहूं बोएं जाते हैं और उन गेंहू के बीजों में रक्षा बंधन के दिन तक गोबर की खाद और पानी दिया जाता है और देखभाल की जाती है।
पर्व की मान्यता : मान्यतानुसार इसका प्रचलन राजा आल्हा ऊदल के समय से है। यह पर्व अच्छी बारिश, अच्छी फसल और जीवन में सुख-समृद्धि की कामना से किया जाता है। तकरीबन एक सप्ताह में गेहूं के पौधे उग आते हैं, जिन्हें भुजरियां कहा जाता है। फिर रक्षा बंधन के दूसरे दिन महिलाओं द्वारा इनकी पूजा-अर्चना करके इन टोकरियों को जल स्त्रोतों में विसर्जित किया जाता है।
शुभकामना का पर्व : इस पर्व में रक्षा बंधन के दूसरे दिन एक-दूसरे को देकर शुभकामनाएं दी जाती है और घर के बुजुर्गों से आशीर्वाद लिया जाता हैं। श्रावण मास की पूर्णिमा तक ये भुजरिया चार से छह इंच की हो जाती हैं। कजलियां (भुजरियां) के दिन महिलाएं पारंपरिक गीत गाते हुए और गाजे-बाजे के साथ तट या सरोवरों में कजलियां विसर्जन के लिए ले जाती हैं।
पौराणिक महत्व : इस पर्व की प्रचलित जानकारी के अनुसार आल्हा की बहन चंदा श्रावण माह में ससुराल से मायके आई तो सारे नगरवासियों ने कजलियों से उनका स्वागत किया था। महोबा के सिंह सपूतों आल्हा-ऊदल-मलखान की वीरता की गाथाएं आज भी बुंदेलखंड की धरती पर सुनीं व समझी जाती है। बताया जाता है कि महोबा के राजा परमाल, उनकी बिटिया राजकुमारी चन्द्रावलि का अपहरण करने के लिए दिल्ली के राजा पृथ्वीराज ने महोबा पर चढ़ाई कर दी थी। उस समय राजकुमारी तालाब में कजली सिराने अपनी सखियों के साथ गई हुई थी।
राजकुमारी को पृथ्वीराज से बचाने के लिए राज्य के वीर महोबा के सिंह सपूतों आल्हा-ऊदल-मलखान ने वीरतापूर्ण पराक्रम दिखाया था। तब इन दो वीरों के साथ में चन्द्रावलि के ममेरे भाई अभई भी उरई से जा पहुंचें। और कीरत सागर ताल के पास हुई लड़ाई में अभई को वीरगति प्राप्त हुई। उसमें राजा परमाल को बेटा रंजीत भी शहीद हो गया। बाद में आल्हा-ऊदल, और राजा परमाल के पुत्र ने बड़ी वीरता से पृथ्वीराज की सेना को हराया और वहां से भागने पर मजबूर कर भगा दिया।
किवदन्ती है कि अभयी का मृत शरीर भी तब तक तलवार चलाता है जब तक वहिन की रक्षा नहीं हो जाती है…..
और इस के बाद जिन्दगी की नश्वरता को सच मान चन्द्रावल रोती हुयी सखियों के साथ कजलिया सिराती हैं..
महोबे की जीत के बाद पूरे बुंदेलखंड में कजलियां का त्योहार विजयोत्सव के रूप में मनाया जाता है ..